नाटक एवं कविताएं >> भारी बस्ता भारी बस्ताउषा यादव
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इसमें बाल कविताओं का वर्णन किया गया है........
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पइयाँ–पइयाँ चल
पइयाँ-पइयाँ चल, बुलू पइयाँ-पइयाँ चल !
गोदी के लिए गुडिया रानी न मचल ।
पइयाँ-पइयाँ चल, बुलू पइयाँ-पइयाँ चल !
दूर घोड़ा पड़ा हुआ उसे उठा ला।
ऊँ-ऊँ करके रो रहा, बो भालू काला।
आज चलाना सीख ले, दौड़ेगी तू कल।
पइयाँ-पइयाँ चल, बुलू पइयाँ-पइयाँ चल।
एक डग, दो डग, भरे गुड़िया रानी।
ताली बजा हँस रही, कैसी है सयानी।
अरे, गिरते ही आँसू आए क्यों निकल ?
पइयाँ-पइयाँ चल, बुलू पइयाँ-पइयाँ चल।
गिर-गिर के ही तू, सीखेगी आगे बढ़ना।
गिरे इस पल, उठ अगले ही पल।
पइयाँ-पइयाँ चल, बुलू पइयाँ-पइयाँ चल।
गोदी के लिए गुडिया रानी न मचल ।
पइयाँ-पइयाँ चल, बुलू पइयाँ-पइयाँ चल !
दूर घोड़ा पड़ा हुआ उसे उठा ला।
ऊँ-ऊँ करके रो रहा, बो भालू काला।
आज चलाना सीख ले, दौड़ेगी तू कल।
पइयाँ-पइयाँ चल, बुलू पइयाँ-पइयाँ चल।
एक डग, दो डग, भरे गुड़िया रानी।
ताली बजा हँस रही, कैसी है सयानी।
अरे, गिरते ही आँसू आए क्यों निकल ?
पइयाँ-पइयाँ चल, बुलू पइयाँ-पइयाँ चल।
गिर-गिर के ही तू, सीखेगी आगे बढ़ना।
गिरे इस पल, उठ अगले ही पल।
पइयाँ-पइयाँ चल, बुलू पइयाँ-पइयाँ चल।
तितली
तितली हूँ मैं रंग-बिरंगी,
बगिया में मँडराती।
फूलों से मीठा रस पीती,
कितनी खुश हो जाती।
बुलू दौड़ती अगर पकड़ने,
हाथ न उसके आती।
जब वह मुझसे टा-टा करती
तब मैं पंख हिलाती।
बगिया में मँडराती।
फूलों से मीठा रस पीती,
कितनी खुश हो जाती।
बुलू दौड़ती अगर पकड़ने,
हाथ न उसके आती।
जब वह मुझसे टा-टा करती
तब मैं पंख हिलाती।
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